एक बकरे की व्यथा
यह सही है
यदि वह नहीं करता आत्महत्या
तो कर दी जाती उसकी हत्या
क्योंकि सही ही था उसका मरना
क्योंकि किसी को लाभ नहीं था
उसके जीवित रहने में
न कर्ज़ देने वाले को
न कर्ज़ लेने वाले को
न परिवार को
न सरकार को
अब जब कि मर ही गया है वह
आत्महत्या के बहाने ही सही
सहूकार को मिल गया है
धन बीमा कम्पनी से
मृतक को तो मिल ही गई
मुक्त्िा सब यातना से
परिवार को भी मिल गया मुआवज़ा
जो पर्याप्त था
अगली पीढ़ी तक के लिए
और मिल ही गया नाम
सरकार को भी
कर के बदनाम पिछली सरकार को
एक बकरा जो थ्ज्ञा उसका प्रिय
समझ नहीं पा रहा था
यह सब
केवल रहेगा वही परेशान
कसाई के आने तक।
जनवादी लेखक संघ, कोटा द्वारा 2008 में प्रकाशित 'जन जन नाद' से साभार। श्री सेदवाल अब हमारे बीच नहीं। उन पर समाचार को 'सान्निध्य सेतु' में पढ़ने के लिए उनके नाम अथवा सान्निध्य सेतु को क्लिक करें और पढ़े। यही उनके लिए सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
यह सही है
यदि वह नहीं करता आत्महत्या
तो कर दी जाती उसकी हत्या
क्योंकि सही ही था उसका मरना
अरुण सेदवाल (1943-2013) |
उसके जीवित रहने में
न कर्ज़ देने वाले को
न कर्ज़ लेने वाले को
न परिवार को
न सरकार को
अब जब कि मर ही गया है वह
आत्महत्या के बहाने ही सही
सहूकार को मिल गया है
धन बीमा कम्पनी से
मृतक को तो मिल ही गई
मुक्त्िा सब यातना से
परिवार को भी मिल गया मुआवज़ा
जो पर्याप्त था
अगली पीढ़ी तक के लिए
और मिल ही गया नाम
सरकार को भी
कर के बदनाम पिछली सरकार को
एक बकरा जो थ्ज्ञा उसका प्रिय
समझ नहीं पा रहा था
यह सब
केवल रहेगा वही परेशान
कसाई के आने तक।
जनवादी लेखक संघ, कोटा द्वारा 2008 में प्रकाशित 'जन जन नाद' से साभार। श्री सेदवाल अब हमारे बीच नहीं। उन पर समाचार को 'सान्निध्य सेतु' में पढ़ने के लिए उनके नाम अथवा सान्निध्य सेतु को क्लिक करें और पढ़े। यही उनके लिए सच्ची श्रद्धांजलि होगी।