गुरुवार, 18 अप्रैल 2013

विजेन्‍द्र कुमार जैन, कोटा

कुछ बच्‍चे, जिनके
garbage collection 
कंधे पर होने चाहिए थे बस्‍ते
उनके कंधे पर देखता हूँ
लटके हुए मोमजामें के थैले और
सड़क पर बिखरी हुई
प्‍लास्टिक की थैलियों को
समेटते हुए वे छोटे छोटे हाथ
सुनता हूँ उनके अबोध
हँसते मस्‍ती में गाते फि‍ल्‍मी गीत
काश ! पैबन्‍द का दर्द जान पाते
किन्‍तु वे उनमें जींस का आनंद लेते
बेखौफ़ बचपन का मज़ाक उड़ाते
पूछना चाहता हूँ, उन्‍हें रोक कर, पर
फि‍ल्‍मों से चुराया एक शब्‍द बोलते हैं-
सॉरी ! हमें जल्‍दी है
कल नये साल की खुशियाँ मनाई थीं न
शहर में बहुत कचरा फैला हुआ है
समेटना है, कमाई करनी है
आज खूब माल मिलेगा
और फि‍र हम भी मनायेंगे नया साल।।

लेखक की  पुस्‍तक 'कचरे का ढेर' से साभार।  

1 टिप्पणी:

डा. रघुनाथ मिश्र् ने कहा…

जनवादी लेखक संघ, कोटा द्वारा प्रकाशित काव्य संकलन् ,'कचरे का ड्रम्' विजेन्द्र जैन की प्रतिनिधि व्यंग्य रचनाओँ की पुस्तक है. देश भर मेँ इसे सस्नेह-सादर पढा जा रहा है. जैन को बधाई.
- डा. रघुनाथ मिश्र
अधिवक्ता/ साहित्यकार.