बुधवार, 24 अप्रैल 2013

डा0 महाश्‍वेता चतुर्वेदी, बरेली (उ0प्र0)

माँ ने ममता के घट को छलकाया है।
खोकर इस अमिरत को मन पछताया है।
जिसके आगे इन्‍द्रासन भी छोटा है,
भव-वैभव जिसके आगे सकुचाया है।
इतराकर अपमान नहीं इसका करना,
माँ को किस्‍मत वालों ने ही पाया है।
इसके बिन दर-दर भटका करता बचपन,
अंधकार को सौतेलापन लाया है।
ईश्‍वर की मूरत को ढूँढ़ रहा बाहर,
माँ में ही भगवान रूप मुसकाया है।
उसके आशीषों का सौरभ साथ रहे,
माँ ने ही जीवन उपवन महकाया है।
व्‍यर्थ गया उसका जीवन 'श्‍वेता' जिसने,
उसकी आँखों में आँसू छलकाया है।।

श्री विजय तन्‍हा, सम्‍पादक और अतिथि सम्‍पादक श्रीमती स्‍वर्ण रेखा मिश्रा सम्‍पादित पत्रकिा 'प्रेरणा' के  कवयित्री  विशेषांक से साभार।   

1 टिप्पणी:

डा. रघुनाथ मिश्र् ने कहा…

माँ को किस्मत वालोँ ने ही पाया है.माँ की ममता का वर्णन शब्दोँ मेँ असम्भव है, जिस तरह से ईश्वर के बारे मेँ समझना व समझाना दोनोँ असम्भव है.वास्तव मेँ वे लोग यकीनन किस्मत वाले हैँ, जिन्हेँ माँ का प्यार्- ममता हासिल है.मेरे गीत की पंक्ति, इस समय महा श्वेता चतुर्वेदी जी की, अभिभूत करनेवाली और ह्रिदय के तारोँ को झंक्रित कर देने वाली पंक्तियाँ पढ कर याद आ गयीँ और रुला भी गयीँ, " अगर न होती माँ तो यह संसार नहीँ होता. माँ के बिन कोई भी घर- परिवार नहीँ होता" और यह भी कि,
" काश मेरी भी माँ होती....." महाश्वेता चतुर्वेदी को इस असाधारण रचना के लिये साधुवाद.

डा. रघुनाथ मिश्र्