मंगलवार, 16 अप्रैल 2013

राम प्रसाद अटल, जबलपुर (म0प्र0)

रक्‍त बीज सम घोटालों का, भारत भूमि पर चलन हुआ है।
धार बह रही पूर्ण देश में, गंगा सा अवतरण हुआ है।

ॠषि मुनियों के आदर्शों की,खूब धज्जियाँ उड़ा रहे हैं,
सदाचार, नैतिकता का तो, किस हद तक अब क्षरण हुआ है।

पर धन पर आधारित भारत, लूट खसोट मूल मंत्र है ,
उड़ा रहे कानून की खिल्‍ली, ऐसा भ्रष्‍ट आचरण हुआ है।

देश का उपवन चर रहे हाथी, बकरी, भेड़ खड़ी मिमियाती,
सह-अस्तित्‍व पूछते क्‍या है, खाली अंत:करण हुआ है।

रातों के अंधियारे में तो, लुटे बहुत से माल खजाने,
अब दिन के उजियारे देखो, अरबों का धन हरण हुआ है।

कानून अपंग रहा देश का, घिस-घिस कर चमकाते हैं ,
आते-आते गई चमक फि‍र, बहुतों का तो मरण हुआ है।

नम्‍बर वन बनने को भ्रष्‍ट, कोशिश जारी है दिन रात,
डरते हैं कमज़ोर मगर, पुरजोरों का आमरण हुआ है।

धन वैभव किसके दास हुए, नहीं रही सोने की लंका,
स्‍वर्ण मृग के कारण ही तो, इक दिन सीता हरण हुआ है।

चाँद सितारों से हम चमके, अटल हमें इतिहास बताता,
वो तारे अब धम-धम गिरते, ऐसा अध:पतन हुआ है।।

संदीप 'सृजन' सम्‍पादित 'शब्‍द प्रवाह' जनवरी-मार्च वार्षिक काव्‍य विशेषांक से साभार। 

1 टिप्पणी:

डा. रघुनाथ मिश्र् ने कहा…

पर धन पर आधारित भारत, लूट खसोट मूल मंत्र है ,
उड़ा रहे कानून की खिल्‍ली, ऐसा भ्रष्‍ट आचरण हुआ है। वाह.
-डा. रघुनाथ मिश्र