रविवार, 21 जुलाई 2013

सुधीर गुप्‍ता 'चक्र'

भई वाह
क्‍या बात है
तुमने
एक नन्‍हीं बूँद
गर्म तवे पर डाली
किस तरह तड़पी वह
और
अस्तित्‍वहीन हो गई

निश्चित ही उसकी
सन्‍न की आवाज
तुम्‍हें अच्‍छी लगी होगी
वरना तुम
ऐसा हरिगिज़ नहीं करते
वो नन्‍हीं बूँद
तुम्‍हारी न सही
पर
किसी चिड़िया की तो
प्‍यास बुझा सकती थी

मैं समझ रहा हूँ
तुम्‍हारे लिए
खेल  है यह
लेकिन
जल भी तो
तुम्‍हारे अस्तित्‍व का
एक हिस्‍सा है
इसलिए
सोचो
वह बूँद कहीं
तुम्‍हारे हिस्‍से की तो नहीं थी।

हाल ही में प्रकाशित श्री 'चक्र' की पुस्‍तक 'क्‍यों' से साभार। 
http://saannidhyadarpan.blogspot.in/2012/09/blog-post.html