मंगलवार, 29 जनवरी 2013

गोपाल कृष्‍ण भट्ट 'आकुल'

वक्‍़त का तगादा है

बस्‍ति‍याँ रोशन करने का वादा है।
अँधेरों से दोस्‍ती करने का इरादा है।
मुद्दतों से काबि‍ज़ हैं दि‍न रात की दूरि‍याँ,
दूर करने को उफ़ुक भी आमादा है।
ऐसे सहरा हैं जहाँ रात को उगता है सूरज,
वहाँ ना कोई बस्‍ती है ना नर ना कोई मादा है।
फ़लक़ पे सि‍तारों का कारवाँ हो तो हो,
जमीं को तो आफ़ताब भी ज़ि‍यादा है।
उसके यहाँ देर सही मगर अंधेर नहीं,
वहाँ न कोई कमज़ोर है न कोई दादा है।
हक़ अदा कर मत उँगली उठा कि‍सी पर,  
शतरंज की बि‍सात का तू इक पि‍यादा है,
हाथ थाम मौक़ा मि‍ले न मि‍ले फि‍र ‘आकुल’,
दोस्‍ती कर यह वक्‍़त का तगादा है।

शनिवार, 26 जनवरी 2013

डा0 नलिन, कोटा

डा0 नलिन की पुस्‍तक 'चाँद निकलता होगा' हाल ही में प्रकाशित उनका ग़ज़ल संग्रह है। इसका रसास्‍वादन करें। ई-पुस्‍तक के रूप में आपके लिए प्रस्‍तुत है, उनकी पुस्‍तक। उनकी एक प्रतिनिधि ग़ज़ल आपकी नज़र है

पटरी पर पहियों के चलते
जैसे चाहो शब्‍द निकलते।
डा0 नलिन गोष्‍ठी में काव्‍य पाठ करते हुए
मानो तो संगीत बसा है
और न मानो तो सुर खलते।
धरती की यदि तपन देख ली
पाँव रहेंगे प्रतिपल जलते।
निगले कैसे कैसे विष हैं
जिनको बनता नहीं उगलते।
पाँवों तले न जाने क्‍या था
पल पल जिस पर रहे फि‍सलते
आ ही जाती है सुध-बुध भी
जीवन की संध्‍या के ढलते।
सब भटके हैं दौड़ भाग कर
बढ़ते जाते 'नलिन' टहलते।।

गुरुवार, 24 जनवरी 2013

डा0 अशोक मेहता, कोटा

माँ

जीवन की प्रथम ध्‍वनि
प्रथम शब्‍द
पहला अहसास
उस व्‍यक्त्वि के लिए, जिसने
जन्‍म दिया
पाला-पोसा
समझाया
सुरक्षा दी
मैं जन्‍म से,
जिसका अहसानमंद हूँ

माँ
एक मधुर स्‍मृति
मन की गहराई में
प्रज्‍ज्‍वलित
एक दीया

माँ
ममता का
आदमकद शीशा, जिसमें
परिलक्षित
नभांतरित प्‍यार

माँ
मन में कुछ उमड़ा
और कागज़ को
अंकित कर गया
बस यही प्रणाम
कर रहा हूँ उसे।

हाल ही में लोकार्पित डा0 मेहता की पुस्‍तक 'मायड़' से साभार


सोमवार, 21 जनवरी 2013

वेद प्रकाश 'परकाश', कोटा

एक तेरा इशारा नहीं है
वर्ना क्‍या कुछ हमारा नहीं है
उसके हम वो हमारा नहीं है
यह वतन जिसको प्‍यारा नहीं है।
ऐ ख़ुदा तू है उसका सहारा
जिसका कोई सहारा नहीं है।
तेरी रहमत से मायूस होकर
एक लम्‍हा गुज़ारा नहीं है।
आसमाने मोहब्‍बत से कबसे
चाँद के पास तारा नहीं है।
जानलेवा है दर्दे जुदाई
हिज्र का और यारा नहीं है
फूल हैं हम सभी इस चमन के
यह हमारा तुम्‍हारा नहीं है।
ऐ सितमगर सिवा तेरे कोई
मैंने दिल में उतारा नहीं है।
हो कलंदर के या हो सिकंदर
मौत से कौन हारा नहीं है।
और सब कुछ है मंज़ूर 'परकाश'
तुमसे दूरी गवारा नहीं है।।

हाल ही में लोकार्पित हुई उनकी पुस्‍तक 'एक तेरा इशारा नहीं है' से साभार।