सोमवार, 1 अप्रैल 2013

रेखानंद बरोड़, चूरू (राजस्‍थान)

लाल रवि उगने वाला है, लाली ज्‍यों बतलाती है ।
जाग,  जाग श्रमजीवी साथी, तुझे नींद  क्‍यों आती है।।

यह तो नगरी चोर, ठगों की, यहाँ लुभाया जाता है।
हर बार यहाँ पर, भेष बदल कर भी भरमाया जाता है।
मुर्गों वाली मीठी बोली, बात यही बतलाती है।
जाग,  जाग श्रमजीवी साथी, तुझे नींद  क्‍यों आती है।।

तेरे भोलेपन से खेत-खलिहान, लुटेरे लूट रहे।
ओ मज़दूरी करने वाले, तुझे बोलते झूठ रहे।
चोर,  लुटेरों की दुनिया तो, हरदम मौज मनाती है ।
जाग, जाग श्रमजीवी साथी, तुझे नींद  क्‍यों आती है।।

मेहनतकश तू गोलबंद हो, चींटी की फ़ि‍तरत कहती है।
चोरी-चकारी से चौकस हो, आज हक़ीक़त कहती है।
तज दे आलस, उठ जा साथी, चोर, चोर के नाती हैं।
जाग, जाग श्रमजीवी साथी, तुझे नींद  क्‍यों आती है।।

बाँध कमरिया मजबूती से, पकड़ मार्ग जो हो सच्‍चा।
भरम सिला के टुकड़े कर दे, फाड़ दे तू चिट्ठा कच्‍चा।
श्रमजीवी ताक़त ही बस, इतिहस नया लिखवाती है।
जाग, जाग श्रमजीवी साथी, तुझे नींद  क्‍यों आती है।।

जनवादी लेखक संघ, कोटा  से प्रकाशित 
*जनवाद  का प्रहरी * से साभार

1 टिप्पणी:

डा. रघुनाथ मिश्र् ने कहा…

pustak kaa naam saarthak karatee rachanaa ke liye haardik saadhuvaad.
DR. RAGHUNATH MISRA