बुधवार, 12 सितंबर 2012

आचार्य भगवत दुबे

कोटा में 10-09-2012 को काव्‍यगोष्‍ठी में बायें से साज़ जबलपुरी, रघुनाथ मिश्र, नेहपाल वर्मा, आचार्य भगवत दुबे, डा0 नलिन और आगे रामेश्‍वर शर्मा (रम्‍मू भैया)
छूते ही हो गयी देह कंचन पाषाणों की 
है कृतज्ञ धड़कनें हमारे पुलकित प्राणों की
आचार्य भगवत दुबे

खंजन नयनों के नूपुर जब तुमने खनकाए
तभी मदन के सुप्‍त पखेरू ने पर फैलाए 
कामनाओं में होड़ लगी फि‍र उच्‍च उड़ानों की
है कृतज्ञ धड़कनें हमारे पुलकित प्राणों की

यौवन की फि‍र उमड़ घुमड़ कर बरसीं घनी घटा 
संकोचों के सभी आवरण हमने दिए हटा 
स्‍वत: सरकनें लगी यवनिका मदन मचानों की 
है कृतज्ञ धड़कनें हमारे पुलकित प्राणों की 

अधरों से अंगों पर तुमने अगणित छंद लिखे
गीत एक-दो नहीं केलिके कई प्रबन्‍ध लिखे 
हुई निनादित मूक ॠचाएँ प्रणय-पुरोणों की 
है कृतज्ञ धड़कनें हमारे पुलकित प्राणों की 

कभी मत्‍स्‍यगंधा ने पायी थी सुरभित काया 
रोमंचक अध्‍याय वही फि‍र तुमने दुहराया 
परिमलवती हुईं कलियाँ उजड़े उद्यानों की 
है कृतज्ञ धड़कनें हमारे पुलकित प्राणों की

1 टिप्पणी:

जन कवि डा. रघुनाथ मिश्र ने कहा…

परम आदरणीय आचार्य भगवत दुबे की कवितायें जीवन के होनेपन की सार्थकता सिद्ध करने में शिक्षक का कम करती हैं.प्रस्तुत सार्थक-प्रेरक रचना के लिए साधुवाद.
जन कवि डॉ. रघुनाथ मिश्र.