रविवार, 23 सितंबर 2012

डा0 सत्‍य नारायण सिंह 'आलोक'

मानस करे पवित्र चिरंतन शाश्‍वत और अविराम।
मर्यादा पुरुषोत्‍तम की परिभाषा चिर श्री राम।
भारत की आँखों से जिसने परखा भाँप लिया,
रिश्‍तों की मर्यादाओं को मान दिया बन आम।
तात, मात, भ्राता, पत्‍नी, रिपु, मित्र या जनमानस,
तन-मन-धन से रहे समर्पित नित्‍य राम निष्‍काम।
तुलसी की कल्‍पना नहीं ना वाल्‍मीकि के श्‍लोक,
धरती पर अवतरित मनुज तन ले छवि मोहक श्‍याम।
आज जगत् पहचान चुका है तज कर तन का रंग,
शोध हो रहे पुण्‍य धरा पर अब नित सुबह औ शाम।
जीत धर्म की, नाश पाप का होते नित उद्घोष,
पश्चिम में भी नित्‍य भोर बेला में शुभ हरि नाम।
भारत में है भले विवादित निज कुंठा वश आज,
लेकिन विश्‍व समूचा सस्‍वर गाता सीता राम।
अमेरिका में हिण्‍डा कामिल बुल्‍के भारत देश,
किस-किस ने ना किया शोध मानस पर ले हरि नाम।
शिव ही राम, राम ही शिव, क्‍यों वैचारिक टकराव,
गीता, बाइबिल, कुरान, मानस सब में है श्रीधाम।
पढ़ लें तो पावन कर दे मन, सुनें तो कर्ण पवित्र,
मर्यादा का कर ले पालन, तो घर चारों धाम।
मन धनुहीं के बाण चले, फि‍र टिके कहाँ अन्‍याय,
देश न जीते, जीते मनवा, मिले सुखद परिणाम।
मन का अंधकार मिट जाए हो विकसित ‘आलोक’,
कर्म वचन के सतत शिरोमणि सबके राजा राम।  

1 टिप्पणी:

जन कवि डा. रघुनाथ मिश्र ने कहा…

श्रेष्ट रचना.डा. आलोक को बधाई व शुभोज्ज्वाल भविष्य की अनंत शुभ कामनाएं.
-जन कवि डॉ. रघुनाथ मिश्र