बुधवार, 26 सितंबर 2012

नरेंद्र कुमार चक्रवर्ती 'मोती'

चन्‍दन की सुरभि में लिपटा स्‍वर्ण प्रलोभन
मात्र यही अनुरोध है, छाया तुम मत छूना मन

नहीं जरूरी यह, जो चाहो, वही मिले
हर उपवन में, कोयल बोले, फूल खिले
भ्रम है छल है सब, पास है वो ही अपना है
क्षणभंगुर आकृतियाँ हैं, सच में तो यह सपना है
जान ले तू यह सत्‍य कटु, करके तू मन मंथन
मात्र यही अनुरोध है---------

कहीं कमी है श्रम की, कहीं दुविधा है निष्‍ठा की
कहीं दौड़ पैसे की है, कहीं पर झूठी प्रतिष्‍ठा की
यहाँ हर कोई ओढ़े है, एक दुशाला परमार्थ का
मार्ग बनाता उल्‍टे-सीधे, वह अपने ही स्‍वार्थ का
साहस है किस में करे, इन परम्‍पराओं का मन खंडन
मात्र यही अनुरोध है-----------

यहाँ हर क्षेत्र में, एक से एक बढ़ कर पंडित
क्षु्द्राकांक्षाओं से पीड़ित, महाभियोग से दंडित
सोच कर परख कर, यहाँ मार्ग तू अपना लेना
देखना समझना सबको, मुँह से कुछ न कहना
पुष्‍पमाला की ओट भी, होता है एक मन बंधन
मात्र यही अनुरोध है----------------

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