रविवार, 16 सितंबर 2012

चाँद शेरी

सौदेबाज़ी में महाजन की तरह
आदमी बिकता है कतरन की तरह
माँग उजड़ी भर के दिलवाला कोई
ले गया घर उसको दुल्‍हन की तरह
वो तो मीरा ही थी दीवानी कोई
जो रही महलों में जोगन की तरह
काँच के घर को न पत्‍थर हाथ का
तोड़ दे मिट्टी के बरतन की तरह
हो या दीवाना उसका इस कदर
मुझको हे रसख़ान मोहन की तरह
टूट कर बिखरें न हम ‘शेरी’ कहीं
देखना इक टूटे दरपन की तरह

दृष्टिकोण-7 से साभार

1 टिप्पणी:

jan kavi dr raghunath mishr ने कहा…

सौदेबाजी में महाजन की तरह.
आदमी बिकता है कतरन की तरह.
भाई चान्द्शेरी साहित्य जगत के फलक पर बड़ी तेजी से उभरे चंद अदीबों में हैं.दिलकश ग़ज़ल के लिए उन्हें मुबारकबाद.

जन कवि डॉ. रघुनाथ मिश्र.