शुक्रवार, 5 अक्तूबर 2012

गांगेय कमल, कनखल (उत्‍तराखंड)

दिवस में काली घटा हो, रातें तमस से गहराई
और बीहड़ पथ में तेरे, देता न हो सुझाई
आँधी के डर से फि‍र
दिया जलाना कब मना है।
मुस्‍कराना कब मना है।।

हो शूल बिखरे राह में, साथ न तेरे हो कोई
तेरी आकुलता से भरी, हो चाहे आँखें रोई
किसी की चाह में फि‍र भी,
गीत गाना कब मना है।
मुस्‍कराना कब मना है।।

थक गया हो हार कर तू, पैर में पड़ी हो बिवाई
जीवन संघर्ष में निश्चित्, पराजय ही तूने पाई
अपनी पराजय से फि‍र भी
उबर आना कब मना है।
मुस्‍कराना कब मना है।।

क्षितिज पर ढलते रवि की, हमने देखी अरुणाई
नयनों में भी लालिमा है, साँझ अब जीवन में आई
बेला विदा की है फि‍र भी,
गुनगुनाना कब मना है।
मुस्‍कराना कब मना है।।

1 टिप्पणी:

डा. रघुंनाथ मिश्र ने कहा…

मुस्कराना कब मना है. वाह क्या बात है.
डा. रघुनथ मिश्र31