गुरुवार, 11 अक्तूबर 2012

जितेन्‍द्र जौहर

मुक्‍तक

1-
फ़क़त ये फूस वाला आशियाना ही बहुत मुझको
बदन पर एक कपड़ा ये पुराना ही बहुत मुझको
मुबारक हो तुम्‍हें झूमर लगी ये चाँदनी 'जौहर',
दरख्‍़तों का सुहाना शामियाना ही बहुत मुझको
2-
किसी दरवेश के किरदार-सा जीवन जिया होता
हृदय के सिंधु का अनमोल अमरित भी पिया होता
नहीं होता तृषातुर मन, हिरन-सा रेत में व्‍याकुल,
अगर अन्‍त:करण का आपने मंथन किया होता
3-
मुक़द्दर आज़माने से, किसी को कुछ नहीं मिलता
फ़कत आँसू बहाने से, किसी को कुछ नही मिलता
हरिक नेमत उसे मिलती, पसीना जो बहाता है,
कि श्रम से जी चुराने से किसी को कुछ नहीं मिलता

शब्‍द प्रवाह मुक्‍तक विशेषांक से साभार

2 टिप्‍पणियां:

डा. रसअघुनाथ मिश्र् ने कहा…

"कि श्रम से जी चुराने से किसी को कुछ नहीँ मिलता" प्रख्यात आलोचक-कलमकार-समीक्शक-मुक्तक विशेशग्य जितेन्द्र जौहर साहित्यजगत के फलक पर वो दैदीप्यमान सितारे हैन, जो छिपी हुई प्रतिभाओन के अन्दर कि लौ इस तरह बाहर उजागर कर्ने मैन श्रेश्त भूमिका अदा कर रहे हैन, जिअसे लाल्तेन की चिमनी को साफ कर देने से लौ बाहर की दुनिया को रोशानी देने लगती है. 'आकुल' को जौहर के तीनोँ ही मोदेल मुक्तक चयनित कर्ने के लिये बधाइ और जौहर साहब को तो बधाइ बनती ही है- साथ मेँ आभार भी कि उन्ह 'आकुल' के इस ब्लाग के जरिये दोबार पधने को मिला और एक बार पुनह मुक्तक छन्द विधान के श्रेश्त उदहरन से मुक्तक समझने का अवसर हाथ लगा. हार्दिक बधाइ- जितेन्द्र जौहर व ब्पगर को पुनह.
डा. रघुनाथ मिश्र.

डा. रघुंनाथ मिश्र ने कहा…

पूर्व की तिप्पडी मैँ नाम 'डा. रघुनाथ मिश्र्' पधेँ, जो त्रुटिवश 'डा रसअघुनाथ्' छप गया है.
डा. रघुनाथ मिश्र