शुक्रवार, 26 अक्तूबर 2012

डा0 मिर्जा हसन नासिर, लखनऊ


त्रिपदा छंद 

लेखक अब तू जाग रे।
भूल नहीं निज धर्म
कर्मों से मत भाग रे।।

काबा काशी एक हैं।
मस्जिद मंदिर एक
मज़हब भले अनेक हैं।।

कितने बेघर हो गये।
अजब हुई बरसात
सपने उनके खो गये।।

प्रीति-रीति न छोड़िए।
कहते ॠषि-मुनि-संत
सम्‍बंधों को जोड़िए।।

यादों की बारात है।
घेरे है अवसाद
बिन मौसम बरसात है।।

तिमिर हुआ सब दूर है।
घर में आया कौन
बिखरा चहूँ दिशि नूर है।।

दृष्टिकोण-5 से साभार 

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