मंगलवार, 16 अक्तूबर 2012

राजेन्‍द्र तिवारी, झालावाड़

वो समंदर पा कर भी प्‍यासा लगा
दुनिया से बड़ा ही रुआँसा लगा।
मुद्दतों में जिस शोहरत को हासिल किया
वक्‍त खोने में उसको जरा सा लगा।
मौसम सा आलम बदलता गया
दरमियाँ दिलों के कुहासा लगा।
मुसीबत में वो गुदगुदा के गया
आदमी सीरत में खुदा सा लगा।
अपनों ज़ख्‍मों के तोहफ़े दिये
बेगानों से मिलके मज़ा सा लगा।
सज़दे में उसके थी नूरानियाँ
दुआओं में असर भी खुदा सा लगा।
गर्दिशों में जो हमसाया लगा।
खुशियों में मेरी क्‍यूँ खफ़ा सा लगा।

1 टिप्पणी:

डा. रघुनाथ मिश्र् ने कहा…

एक मुकम्मल और दिल्कश गज़ल के लिये लोकप्रिय् गज़लकार - गीतकार् भाई रजेन्द्र तिवारी को हार्दिक बधाई और अनंत शुभकामनायेँ.
डा. रघुनाथ मिश्र्