गुरुवार, 1 नवंबर 2012

एस0 एम0 अब्‍बास, जौनपुर (उ0 प्र0)

खुशबू इत्र में होती है
फूल, अगर और धूप में भी
मगर एक खुशबू और भी है सब से अलग,
बिना किसी सामग्री वाली शुद्ध-पवित्र,
यह खुशबू प्‍यार की है
एकता और सौहार्द की है
माँ का बेटे से, बहिन का भाई से-
जो प्‍यार होता है,
उससे घर परिवार महकता है
मन चाहता है कि मेरे पड़ौस के लोग
एक दूसरे के साथ ऐसी मोहब्‍बत करें
इतना प्‍यार दें कि मेरा पड़ौस,
पड़ौस का एक-एक घर-आँगन
सब महक जायें सौहार्द-भाईचारा और
अपनेपन की खुशबू से, मगर उसी पल
याद आ जाता है ‘देशप्रेम’
जो कितना ऊँचा, कितना भारी, कितना पवित्र है
देश अपने नाम पर
मर मिटने वाले को अमर बना देता है
आदमी के ऊपर से उसकी पीढ़ी दर पीढ़ी का
कर्ज़ उतार देता है।।  
दृष्टिकोण-7 से साभार

कोई टिप्पणी नहीं: