रविवार, 11 नवंबर 2012

बुनियाद हुसैन ‘ज़हीन’, बीकानेर


आदमी कब किसी से डरता है
ये तो बस जिन्‍दगी से डरता है
क़हर ढाएगी जाने क्‍या मुझ पर
दिल तेरी खामुशी से डरता है
मुर्दादिल को ये कोन समझाए
ज़ुल्‍म, ज़िन्‍दादिली से डरता है
डर ख़ुदा का न हो अगर दिल में
आदमी आदमी से डरता है
ज़ख्‍म जिसने कभी दिये थे ‘ज़हीन’
आज तक दिल उसी से डरता है।

ग़ज़ल संग्रह ‘एहसास के रंग’ व दृष्टिकोण से साभार 

1 टिप्पणी:

DR.RAGHUNATH MISHR ने कहा…

saarthak panktiyaan. haardik badhaaee.

DR. RAGHUNATH MISHR