माँ आँखों से ओझल होती।
आँखें ढूँढ़ा करती रोती।
वो आँखों में स्वप्न
सँजोती।
हर दम नींद में जगती सोती।
वो मेरी आँखों की ज्योति।
मैं उसकी आँखों का मोती।
कितने आँचल रोज़ भिगोती।
कहता घर मैं हूँ इकलौती।
दादी की मैं पहली पोती।
माँ की गोदी स्वर्ग मनौती।
क्या होता जो माँ न होती।
नहीं जरा भी हुई कटौती।
गंगा बन कर भरी कठौती।
बड़ी हुई मैं हँसती रोती।
आँख दिखाती जो हद खोती।
शब्द नहीं माँ कैसी होती।
माँ तो बस माँ जैसी होती।
आज हूँ जो वो कभी न होती।
मेरे संग जो माँ न होती।
1 टिप्पणी:
आज हूँ जो वो कभी न होती।
मेरे संग जो माँ न होती।
हकिकत है ये. माँ बिन जिन्दगि अधूरी है. काश मेरी भी माँ होती. बहुत सुन्दर प्र्स्तुति. बहुत अच्छे भाव. बहुत अच्छे शिल्प. हार्दिक बधाई व शुभोज्ज्वल भविश्य की मंगल कमन.
डा. रघुनाथ मिश्र्
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