मंगलवार, 14 मई 2013

आर0सी0 शर्मा 'आरसी', कोटा

आर0 सी0 शर्म
माँ कुछ दिन तू और न जाती,

मां कुछ दिन तू और न जाती,
मैं ही नहीं बहू भी कहती,
कहते सारे पोते नाती. 
मां कुछ दिन तू और न जाती..

हरिद्वार तुझको ले जाता,
गंगा में स्नान कराता ।
कुंभ और तीरथ नहलाता,
कैला मां की जात कराता ।
धीरे धीरे पांव दबाता,
तू जब भी थक कर सो जाती। मां कुछ ...

रोज़ सवेरे मुझे जगाना,
बैठ खाट पर भजन सुनाना ।
राम कृष्ण के अनुपम किस्से,
तेरी दिनचर्या के हिस्से।
कितना अच्छा लगता था जब,
पूजा के तू कमल बनाती। मां कुछ ....

सुबह देर तक सोता रहता,


घुटता मन में रोता रहता ।
बच्चें तेरी बातें करते,
तब आंखों में आंसू झरते।
हाथ मेरे माथे पर रख कर,
मां तू अब क्यों न सहलाती। मां कुछ....


कमरे का वो सूना कोना,
चलना,फ़िरना,खाना,सोना।
रोज़ सुबह ठाकुर नहलाना,
बच्चों का तुझको टहलाना।
जिसको तू देती थी रोटी,
गैया आकर रोज़ रंभाती। मां कुछ....


अब जब से तू चली गई है,
मुरझा मन की कली गई है।
थी ममत्व की सुन्दर मूरत,
तेरी वो भोली सी सूरत।
द्रूढ निश्चय और वज्र इरादे,
मन गुलाब की जैसे पाती।
मां कुछ दिन तू और न जाती. 


श्री आर0 सी0 शर्मा 'आरसी' के ब्‍लॉग से साभार । कविता की पहली गहरी पंक्ति को क्लिक कर उनके ब्‍लॉग पर प्रकाशित कविता को पढ़ें व उनके ब्‍लॉग पर भ्रमण करें। उनके चित्र पर अंकित नाम पर क्लिक कर  उनके ब्‍लॉग पर पहुँचें।-आकुल  

1 टिप्पणी:

डा. रघुनाथ मिश्र् ने कहा…

मार्मिक- ह्रिदयस्पर्शी-माँ के प्रति अति सम्वेदन्शील कविता.
डा. रघुनाथ मिश्