गुरुवार, 2 मई 2013

डा0 नौशाब 'सुहैल', दतियवी, दतिया (म0प्र0)

दुखे जो दिल तेरा इतना प्‍यार मत करना।
मैं जा रहा हूँ मेरा इंतजार मत करना।
जख्‍़म अल्‍फ़ाज़ के कभी नहीं भरते ,
ख़ुदा के लिए तुम ऐसा वार मत करना।
वो आला दर्जे के लोग हैं भाई,
ऐसे लोगों में मेरा शुमार मत करना।
चोट खाई है गर तुमने मुहब्‍बत में,
ऐसी ख़ता बार बार मत करना।
शिकवा शिकायत दिल से भुला देना,
दो दिलों के बीच दीवार मत करना।
वो किसी के प्‍यार में दीवाना है,
उसकी बातों पर एतबार मत करना।
इश्‍क इक आग का दरिया है 'सुहैल',
तुम ये दरिया कभी पार मत करना।

पंकज पटेरिया सम्‍पादित 'शब्‍दध्‍वज' से साभार।

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