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3 नवम्बर 2011 को परियावाँ (उ0प्र0) में सम्मान कार्यक्रम में आलेख एवं कविता पाठ करते हुए |

कल किसने देखा है अब ही आकर मिल॥
दुनियां का हर दर्द छुपा है इस दिल में,
तू भी अपना दर्द साथ में लाकर मिल॥
मंदिर मस्जिद गिरजाघर में क्या रक्खा,
माँ के चरणों में नित शीश झुकाकर मिल॥
सुखियों से तो मिलते हैं सब लोग यहाँ,
दुखियों को भी दिल से कभी लगाकर मिल॥

नफरत और क्रोध की ज्वाला में मत जल,
मन में दीप प्यार के सदा जलाकर मिल॥
जीते जी फुर्सत न कभी होगी तेरी,
हरि सुमिरन में भी कुछ वक्त बिताकर मिल॥
दुनिया दीवानी होगी तेरी 'गाफिल',
मन के सारे भेद-भाव बिसरा कर मिल॥

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