22-08-2010 को 'आकुल' की पुस्तक 'जीवन की गूँज' का लोकार्पण करते हुए विद्वान् |

साहित्य का फ़रिश्ता, धरती पे उतर आया।
‘जीवन की गूँज’ में क्या जादू सा है दिखाया।
ईश्वर ने यार दिल का पारस तुम्हें बनाया।
जो क़रीब आया तेरे, कुन्दन उसे बनाया।
साहित्य का फ़रिश्ता-----------------
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डा0 फ़रीदी काव्यपाठ करते हुए |
सेवा में सरस्वती की पागल रहेगा यारो।
साहित्य का फ़रिश्ता----------------
शब्दों में ढाल देते हो भावना के मोती।
सोने में जो सुहागा, हर बात ऐसे होती।
पाया है तुमको जैसा वैसा तुम्हें बताया।
साहित्य का फ़रिश्ता-----------------
‘आकुल’ के दोनों बाजू, सहयोगी ऐसे-ऐसे।
रघुनाथ मिश्र जैसे, हैं नरेंद्र ‘मोती’ जैसे।
साहित्य का फ़रिश्ता ------------------
सच बोले ये ‘फ़रीदी’ हैरत है इसमें कैसी।

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'जीवन की गूँज' पर आलेख प्रस्तुत करतीं डा0 कंचना संक्सैना |
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