शनिवार, 26 अक्तूबर 2013

डा0 नलिन, कोटा, राजस्‍थान

इस बस्‍ती में बड़े झमेले
इक पल रोये इक पल खेले

देख चुके सब विद्यालय अब
हम ही गुरु हैं हम ही चेले

आज आपके पास हुए पर
कितने कितने पापड़ बेले

साथ सभी रहते थे फि‍र भी
सुख दुख अपने अपने झेले

आज मात्र रहते हैं सब तो
जीवन की घड़ियों के ठेले

पास हमारे प्रेम-प्रीति है
चाहे जो कोई भी ले ले

छोड़ 'नलिन' मित्रों की संगत
अच्‍छा है अब रहें अकेले।

डा0 नलिन की पुस्‍तक 'चाँद निकलता तो होगा' से साभार

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