सोमवार, 21 जनवरी 2013

वेद प्रकाश 'परकाश', कोटा

एक तेरा इशारा नहीं है
वर्ना क्‍या कुछ हमारा नहीं है
उसके हम वो हमारा नहीं है
यह वतन जिसको प्‍यारा नहीं है।
ऐ ख़ुदा तू है उसका सहारा
जिसका कोई सहारा नहीं है।
तेरी रहमत से मायूस होकर
एक लम्‍हा गुज़ारा नहीं है।
आसमाने मोहब्‍बत से कबसे
चाँद के पास तारा नहीं है।
जानलेवा है दर्दे जुदाई
हिज्र का और यारा नहीं है
फूल हैं हम सभी इस चमन के
यह हमारा तुम्‍हारा नहीं है।
ऐ सितमगर सिवा तेरे कोई
मैंने दिल में उतारा नहीं है।
हो कलंदर के या हो सिकंदर
मौत से कौन हारा नहीं है।
और सब कुछ है मंज़ूर 'परकाश'
तुमसे दूरी गवारा नहीं है।।

हाल ही में लोकार्पित हुई उनकी पुस्‍तक 'एक तेरा इशारा नहीं है' से साभार।

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