गुरुवार, 24 जनवरी 2013

डा0 अशोक मेहता, कोटा

माँ

जीवन की प्रथम ध्‍वनि
प्रथम शब्‍द
पहला अहसास
उस व्‍यक्त्वि के लिए, जिसने
जन्‍म दिया
पाला-पोसा
समझाया
सुरक्षा दी
मैं जन्‍म से,
जिसका अहसानमंद हूँ

माँ
एक मधुर स्‍मृति
मन की गहराई में
प्रज्‍ज्‍वलित
एक दीया

माँ
ममता का
आदमकद शीशा, जिसमें
परिलक्षित
नभांतरित प्‍यार

माँ
मन में कुछ उमड़ा
और कागज़ को
अंकित कर गया
बस यही प्रणाम
कर रहा हूँ उसे।

हाल ही में लोकार्पित डा0 मेहता की पुस्‍तक 'मायड़' से साभार


1 टिप्पणी:

डा.रघुनाथ मिश्र् ने कहा…

चिर प्रतीक्षित क्रिति 'मायण्' डा.अशोक मेहता की अनुपम भेँट है-साहित्यकरोँ-पाठकोँ-आम लोगोँ के लिये, जो ह्रिदय मेँ एक सार्थक ज्वाला पैदा करती है-असलियत पर् रोशनी डालती है और साथ ही, 'देर आये-दुरुस्त् आये' वाली कहावत को चरितार्थ करते हुए डा. मेहता की अब तक एक मात्र सद्य प्रकाशित क्रिति 'मायण' एक बाइंडिँग मेँ तीन पुस्तकेँ पढने का अप्रतिम अवसर देती है. हार्दिक बधाई व शुभोज्ज्वल भविश्य की अनंत मंगल कामनयेँ.
डा. रघुनाथ मिश्र्