राजेश गोयल |
हर गीत निखर जाये मेरा, तुम आओ जब मेरे द्वारे।
मैं पलक पावणे बैठा था
मेरा अपना भी कोई आएगा
ऐसा ही मैं भी गीत कोई लिखूँ
पत्थर मूरत हो जायेगा
यह गीत सिंधु सा हो जाये, तुम आओ जब मेरे द्वारे।
गंगा की पावन धारा तुम, आओ अब मेरे द्वारे।
तू तुलसी की रामायण, मैं प्रेमचंद की रंगशाला
तू गालिब की गजल बने
बच्चन की मैं भी मधुशाला
गीतों को सरगम मिल जाये, तुम आओ जब मेरे द्वारे
तुम वृहद कोष हो शब्दों का
मैं एक शब्द हो गया।
अब तन मेरा मथुरा का यौवन
मन वृन्दावन हो गया।
हर गीत ही गीता हो जाये,
तुम आओ जब मेरे द्वारेकाव्याकाश से साभार
1 टिप्पणी:
हर गीत निखर जाये मेरा तुम आओ जब मेरे द्वारे.
वाह क्या भव पक्श और क्या कलापक्श्. दोनोँ द्रिश्तियोँ से बेजोद रचना के लिये हर्दिक बधाई.
डा. रघुनाथ मिश्र
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