कभी कभी
जिनको मैं
अच्छे से जानती हूँ
उनको भी
कभी कभी
न समझ एक हवा
न समझ एक हवा
बह रही थी उस दिन
मैं समझ नहीं पा रही थी
आपको, स्वयं को और
भोले से उस उदासीन
बालक को
उलटी-पलटी हवा और
टूटे हुए पत्ते
नये ढंग से चिह्नित कर रही थी
हम सबको- हम जो नहीं है
वह बन गये
एक दिन
दृष्टिकोण प्रवेशांक से साभार
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें