सोमवार, 29 अक्तूबर 2012

कृष्‍णदास

शरद रास

खेलत रास रसिक नंदलाला
 जमुना-पुलिन सरद निसि सोभित रचि मण्‍डल ठाढ़ी ब्रजबाला।।
 तत्‍ता थेई तत्‍ता थेई सब्‍द उघटत है बाजत झाँझ पखावज झाला।
 जम्‍यौ सरस खट राग सप्‍त स्‍वर कूजत कोमल बेन रसाला।।
 सन्‍मुख लेत है उरप तिरप दोउ, राधा रसिकिनी मदनगोपाला।
 मानों जलद दामिनी रसभरी कनक-लता मानौं स्‍याम तमाला।।
 सुरपुर-नारी निहारि परम रस अरु रतिपति मन्‍मथ बेहाला।
 थकित चंद गति मंद भयौ अति चूके मुनि ध्‍यान धरत बहु काला।।
 परम विलास रच्‍यौ नटनागर‍ विलुलित उरसि मनोहर माला।
 ’कृष्‍णदास’ लाल गिरिधर–गति पावत नांहिने स्‍वामि मराला।। 
(सूर सागर एवं परमानन्‍द सागर को छोड़कर कृष्‍णदास पद संग्रह ही आकार में सबसे बड़ा है। कृष्‍णदास के काव्‍य का वर्ण्‍य-विषय यद्यपि सभी रस की भगवल्‍लीलाएँ ही हैं तथापि चौरासी वैष्‍णवन की वार्ता के अध्‍ययन से प्रकट होता है कि उन्‍हें रासलीला का विशेष साक्षात् हुआ था। पुष्टिमार्गीय वल्‍लभकुल सम्‍प्रदाय के अष्‍टछाप कवियों में एक प्रख्‍यात कवि कृष्‍णदास का एक रासलीला पद जो राग 'खट'में निबद्ध है।) 

1 टिप्पणी:

डा. रघुनाथ् मिश्र् ने कहा…

सूरसागर- परमानन्द सागर- क्रिश्णदास पद संग्रह के बारे मेँ जानकारी के साथ साथ क्रिश्णदास के रोचक शरद रास को पढ कर आनन्दानुभूति और न्य ग्यान की अभिव्रिद्धि हुई. बधाई- आभार.
डा. रघुनाथ मिश्र्