यह कौन उषा काल में गाता है वंदे मातरम्
हम हैं अभी पहने हुए अंग्रेजियत की बेड़ियाँ
बस व्यंग्य सा लगता है हमको मित्र वंदे मातरम्
हो दासता से मुक्त अपनी भरती माँ भारती
होगा तभी तो सत्य शाश्वत घोष वंदे मातरम्
इस देश में अब देशहित की बात होती ही नहीं
बस चल रहा भारत भरोसे राम वंदे मातरम्
बस चल रहा भारत भरोसे राम वंदे मातरम्
कुछ लोग कहने को नहीं तैयार वंदे मातरम्
न्यायालयों, कार्यालयों में है सहस्रों रिक्तियाँ
भरता नहीं कोई उन्हें नि:स्वार्थ वंदे मातरम्
आत्मा हमारी मर गई परमात्मा भी खो गया
हावी है सुविधा शुल्क सिद्धि स्वार्थ वंदे मातरम्
हिन्दी है हिन्दुस्तान में परित्यक्त पत्नी की तरह
अंग्रेजियत है प्रेमिका सत्ता की वंदे मातरम्
जो देश हम पर कर रहा आतंकियाँ हमले ‘हितेश’
हम साथ उसके खेलते क्रिकेट वंदे मातरम्।
1 टिप्पणी:
रचनाकार को श्रेस्त रचना प्रस्तुति के लिये बधाइ.
डा. रघुनथ मिश्र
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