मेरे हमसफ़र मुझे माफ़ कर मेरा रास्ता कुछ और है।
तू सुन न सुन तेरी रज़ा मरी शायरी मेरी बन्दगी,
मैं बना न पाया ताज पर मेरी साधना कुछ और है।
तेरी हर खुशी मेरी खुशी तेरा दर्द ही मेरा दर्द है,
मैं वो नहीं कुछ और हूँ मेरी दास्ताँ कुछ और है।
तेरी शक्ल में कुछ बात है जो मेरे दिल को भा गई,
तू नसीब है किसी और का मेरा राज़दाँ कुछ और है।
तू पली है फूलों के दरमियाँ मेरा जन्म ही ख़ारों में है,
तेरा मर्तबा कुछ और है मेरा मर्तबा कुछ और है।
'बेकल’ नहीं तू बेवफ़ा तेरा दीन पर ईमान है,
तुझे दोष देते वो बेवज़ह तेरा इम्तहाँ कुछ और है।
1 टिप्पणी:
सार्थक पंक्तियोँ के लिये सधुवाद.
-डा. रघुनाथ मिश्र्
एक टिप्पणी भेजें