बढ़ी है मुल्क में दौलत तो मुफ़लिसी क्यों है?
हमारे घर में हर इक चीज़ की कमी क्यों है?
मेरे नसीब में आखिर ये तश्नगी क्यों है?
इसीलिए तो ख़फ़ा है ये चाँद जुगनू से,
कि इसके हिस्से में आखिर ये रोशनी क्यों है?
ये एक रात क्या हो गया है बस्ती को?
कोई बताये यहाँ इतनी ख़ामुशी क्यों है?
किसी को इतनी फुरसत नहीं कि देख तो ले,
ये लाश किसकी है, कल से यहीं पड़ी क्यों है?
जला के ख़ुद को जो देता है रोशनी सबको,
उसी चराग़ की किस्मत में तीरगी क्यों है?
हर एक राह यही पूछती है हमसे ‘सिराज’, सफ़र की धूल मुकद्दर में आज भी क्यों है?
1 टिप्पणी:
sundar rachna ke liye shiraj ko badhaai.
DR. RAGHUNATH MISHR
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