1
कभी गैरों के सिर का बोझ अपने सिर उठाया क्या?
तुम्हारी जिन्दगी का पल किसी के काम आया क्या?
अँधेरे खुद दीये की राह में आने से डरते हैं,
अँधेरे से डर कर कभी दीये ने सर उठाया क्या?
2
उतर न जाये गर दिल में मधुर गीत नहीं।
गम हो या हो खुशी जो साये की तरह साथ रहे
धड़कनों से है जुदा गर तो कोई मीत नहीं
3
फूल काँटों में है पला सीखो
जिन्दगी जीने की कला सीखो
व्यक्तिगत स्वार्थ से ऊपर उठ कर
कैसे दुनिया का हो भला सीखो
4
तकाज़ा वक़्त का ठहरा नहीं है।
समंदर दिल से तो गहरा नहीं है।
तलाशोगे तो पाओगे नज़र में,
मोहब्बत का कोई चेहरा नहीं है
5
मधुर रस गंध से भीगा हुआ पल याद आता है
न जाने क्यूँ बीता हुआ कल याद आता है
कभी छू कर नहीं गुजरी तपिश सर को मेरे भाई
मुझको ममतामयी माँ का वो आँचल याद आता है
6
किसी परिंदे को पाखों से जुदा मत करना
तोड़ कर फूलों को शाखों से जुदा मत करना।
मेरे मेहबूब बस इतनी सी तमन्ना है मेरी
छीन कर ख्वाबों को आँखों से जुदा मत करना
दृष्टिकोण-7 से साभार
दृष्टिकोण-7 से साभार
1 टिप्पणी:
श्रेश्ट् मुक्तकोँ के लिये साधुवाद.
- डा. रघुनाथ मिश्र्
एक टिप्पणी भेजें