साज़िश ये रौशनी और अँधेरे की देखिये
साया भी मेरा अब कई हिस्सों में बँट गया
हमारी ज़िन्दगी तो एक सा व्यवहार करती है
इसे हर चाहने वाला ये खुशफहमी में जीता है
ये मुझसे प्यार करती है, मुझी से प्यार करती है
जिसका मक़्सद हर तरह से पाक था
कम नज़र लोगों में वो चालाक था
घुटने-घुटने पानी में जो मर गया
लोग कहते हैं कि वो तैराक था
क्या करें, कैसे करें, कितना करें, किसका करें
ज़िन्दगी हम बोझ तेरा कौन सा हल्का करें
बढ़ने लगें जिस वक़्त तक़ाजे ये पेट के
सो जाइएगा पैरों को अपने समेट के
इस देश में कोई नहीं नंगा रहेगा अब
हम लोग जियेंगे यहाँ वादे लपेट के
पुस्तक 'किरचें' से