रविवार, 31 मार्च 2013

संदीप सृजन फाफरिया, उज्‍जैन (म0प्र0)

जब भी मिलता है बड़े प्‍यार से मिलता है
एक वो ही है जो अधिकार से मिलता है

जीत के बाद सब कुछ भुला देते हैं लोग
सोचने का अवसर तो हार से मिलता है

खरा इतना है, उसकी जुबान का अंदाज़
चाकू, कैंची और तलवार से मिलता है

अनुभवों का ख़ज़ाना ज़िन्‍दगी की नाव को
किनारों नहीं मझधार से मिलता है

हाल-चाल जानने को आसपास *सृजन* 
बशर-बशर से नहीं अखबार से मिलता है

*शब्‍द प्रवाह* वार्षिक काव्‍य विशेषांक जनवरी-मार्च 2012 से साभार