पात पात कह रहे हैं, शाख-शाख से।
डाल-डाल कह रही है तने-तने से।
क्यों खड़ें हैं हम, बने-बने से?
तना-तना कह रहा है जड़ों-जड़ों से।
क्यों लग रहे हैं खड़े, बड़ों-बड़ों से?
जड़ें-जड़ें कह रही हैं, माटी-माटी से।
क्यों काट रहे हैं जन, आरी-कुल्हाड़ी से?
माटी-माटी कह रही है, इंसान-इंसान से।
क्यों वृक्ष बिन जी सकोगे, शान-शान से?
इंसान-इंसान कह रहे हैं छोर-छोर से।
क्यों शब्द लग रहे, घनघोर-घोर से?
छोर-छोर कह रहे हैं भाव-भाव से।
क्यों न हरा-भरा होगा वृक्ष, हाव-भाव से?
(पुस्तक-सच तो है से)
1 टिप्पणी:
Nice.
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