डा0 नलिन की पुस्तक 'गीतांकुर' का विमोचन करते हुए साहित्यकार |
घर तो अपना होता है।
सदा प्यार करने वालों का
साझा सपना होता है।
और नींद भर नींद मिले बस।
इतना सा ही मिले जाये तो
फिर कुछ भी ना मिले बस।
थोड़ा थोड़ा बहे भले ही
सबका ही पर बहे पसीना।
एक दूसरे की खुशियों में
रहे फूलता सबका सोना।
छूने देना गालों को भी।
हँसी खेल में वो खींचे तो
खिंचवा लेना बालों को भी।
घर है जीवन, जीवन है घर
अच्छा घर तो अच्छा जीवन।
घर से बनते जगती के
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें