रविवार, 2 सितंबर 2012

शरद तैलंग


कभी जागीर बदलेगी, कभी सरकार बदलेगी,
मगर तक़दीर तो अपनी बता कब यार बदलेगी?
अगर सागर की यूँ ही प्यास जो बढती गई दिन दिन,
तो इक दिन देखना नदिया भी अपनी धार बदलेगी. 
हज़ारोँ साल मेँ जब दीदावर होता है इक पैदा,
तो नर्गिस अपने रोने की तू कब रफ्तार बदलेगी?
सदा कल के मुकाबिल आज को हम कोसते आये,
मगर इस आज की सूरत भी कल हर बार बदलेगी.
वो सीना चीर के नदिया का फिर आगे को बढ जाना,
बुरी आदत सफीनोँ की भँवर की धार बदलेगी.
शरद पढ़ लिख गया है पर अभी फाके बिताता है,
ख़बर उसको न थी क़िस्मत जो होँ कलदार बदलेगी।



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