युवा नवगीतकार अवनीश सिंह चौहान को प्रथम कविताकोश 2011 पुरस्कार |
नयी चलन के इस कैफे में
प्रथम कविताकोश के लिए प्रशस्ति पत्र और मोमेन्टो लेते हुए अबनीश सिंह चौहान |
पियें-पिलायें, मौज उड़ायें
मिल ठनठनायें मनचले
देह उघारे, करें इशारे
जुड़ें-जुड़ायें नयन-गले
मदहोशी में इतना बहके
भूल गये सब सीमाएँ!
झरी माथ से मादक बूँदें
साँसों में कुछ ताप चढ़ा
जुड़ें-जुड़ायें नयन-गले
मदहोशी में इतना बहके
भूल गये सब सीमाएँ!
झरी माथ से मादक बूँदें
साँसों में कुछ ताप चढ़ा
लखनऊ: २६ एवं २७ नवंबर २०११ को अभिव्यक्ति विश्वम् (http://www.abhivyakti-hindi.org/) के सभाकक्ष में आयोजित नवगीत परिसंवाद एवं विमर्श में अवनीश सिंह चौहान, पूर्णिमा वर्मन आदि अनेकों साहित्यकार |
अबनीश सिंह चौहान के ब्लॉग पूर्वाभास से साभार
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