मंगलवार, 4 सितंबर 2012

अबनीश सिंह चौहान



युवा नवगीतकार अवनीश सिंह चौहान को प्रथम कविताकोश 2011 पुरस्‍कार
नयी चलन के इस कैफे में
प्रथम कविताकोश के लिए प्रशस्ति पत्र और मोमेन्‍टो लेते हुए अबनीश सिंह चौहान
शिथिल हुईं सब धाराएँ

पियें-पिलायें, मौज उड़ायें
मिल ठनठनायें मनचले
देह उघारे, करें इशारे
जुड़ें-जुड़ायें नयन-गले

मदहोशी में इतना बहके
भूल गये सब सीमाएँ!

झरी माथ से मादक बूँदें
साँसों में कुछ ताप चढ़ा

थोड़ा पानी रखो बचाकर
करते क्यों आँखें परती?

जब-जब मरा आँख का पानी
आयीं तब-तब विपदाएँ!
लखनऊ: २६ एवं २७ नवंबर २०११ को अभिव्यक्ति विश्वम् (http://www.abhivyakti-hindi.org/) के सभाकक्ष में आयोजित  नवगीत परिसंवाद एवं विमर्श में अवनीश सिंह चौहान, पूर्णिमा वर्मन आदि अनेकों साहित्‍यकार
अबनीश सिंह चौहान के ब्‍लॉग पूर्वाभास से साभार

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