हे, हंसवाहिनी अम्बिके, हमें लगा माँ पार दे।
श्वेतपद्मासना वीणापाणि, हे श्वेत अम्बर धारिणी।
सुबुद्धि दे हे विद्यादायिनी, हे भावपुष्प प्रवाहिनी।
ममता मयी सुरसरिता तेरे, नतमस्तक सब भक्त हैं।
वेदव्यास, वाल्मीकि, तुलसी, भारवि सिद्धहस्त हैं।
युगदृष्टा कभी सूरदास थे, अब रवींद्र जैन हैं।
कला जगत् के सभी बने एक अनूठी मिसाल हैं।
तू ने दिये लाड़ले माँ ये, माँ-भारती के भाल हैं।
तपे अधिक जितना सोना, वो उतना निखार पाता है।
जितना करे तप साधना,वो उतना शिखर पाता है।
चाहिए आशीष तेरी शरण में हैं माँ हमें।
'पुखराज’ तेरी चरण रज, मस्तक चढ़ा कर नित नमें।
1 टिप्पणी:
श्रेश्त- देश्भक्तिपूर्ण रचना के लिये बअधाइ'
डा. रघुनथ मिश्र्
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