सूर्य की पहली किरण हो चहकती मनुहार हो तुम
प्रीत एक पावन हवन है दिव्य मंत्रोच्चार हो तुम
इस धरा से व्योम तक तुमने उकेरीं अल्पनाएँ
छू रहीं हैं अंतरिक्षों को तुम्हारी कल्पनाएँ
प्रेमियों के उर से जो निकलें वही उद्गार हो तुम
प्रीत एक पावन हवन है दिव्य मंत्रोच्चार हो तुम
रातरानी, नागचम्पा, गुलमोहर, कचनार हो
तुम रजत के कंठ में ज्यों स्वर्णमुक्ता हार हो
रजनीगंधा की महक तुम हो गुलाबों की हँसी
केतकी, जूही, चमेली, कुमुदिनी गुलनार हो तुम
प्रीति एक पावन हवन है, दिव्य मंत्रोच्चार हो तुम
जोगियों का तप हो जप हो आरती तुम अर्चना
साधकों का सध्य तुम ही भक्त्ा की हो भावना
पतित पावन सुरसरि कालिंदी तुम हो नर्मदा
पुण्य चारों धाम का हो स्वयं ही हरिद्वार हो तुम
प्रीत एक पावन हवन है दिव्य मंत्रोच्चार हो तुम
पल्लवित पुष्पित किया यह बाग तुमने प्यार से
स्वामिनी हो तुम हृदय की प्रीत हो तुम ही प्रिया
जो बिखेरे अनगिनत रंग फागुनी त्योहर हो तुम
प्रीत एक पावन हवन है दिव्य मंत्रोच्चार हो तुम
1 टिप्पणी:
श्रेष्ट रचना.बधाई.
जन कवि डा. रघुनाथ मिश्र
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