राह तकता है तुम्हारी गाँव, अब घर लौट आओ--------
छोड़कर अपनी मढ़ैया, क्यों शहर में जा बसे तुम
बिन तुम्हारे लग रहा, घर अनमना, चौपाल गुमसुम
धूप के थकने लगे हैं पाँव, अब घर लौट आओ-------
याद कर-कर के तुम्हें, माँ ने बुरी हालत बना ली
वृद्ध बापू की निगाहें, बन गईं जैसे सवाली
ज़िन्दगी है या कि हारा दाँव, अब घर लौट आओ--------
ज़िन्दगी है या कि हारा दाँव, अब घर लौट आओ--------
खेत प्यासे हैं, महीनों से नहर सूखी पड़ी है
फ़स्ल जो कुछ है, महाजन की नज़र उस पर गड़ी है
कुछ ठिकाना है, न कोई ठाँव, अब घर लौट आओ-------
लौट कर बरसात का, मौसम अभी आया नहीं है
इसलिए टूटा हुआ, छप्पर अभी छाया नहीं हैकुछ ठिकाना है, न कोई ठाँव, अब घर लौट आओ-------
लौट कर बरसात का, मौसम अभी आया नहीं है
पेड़ में छिपने लगी हैं छाँव, घर लौट आओ--------
राह तकता है तुम्हारी गाँव, अब घर लौट आओ------
1 टिप्पणी:
श्रेष्ट रचना.
जन कवि डॉ.रघुनाथ मिश्र
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