आदमी बिकता है कतरन की तरह
माँग उजड़ी भर के दिलवाला कोई
ले गया घर उसको दुल्हन की तरह
वो तो मीरा ही थी दीवानी कोई
जो रही महलों में जोगन की तरह
काँच के घर को न पत्थर हाथ का
तोड़ दे मिट्टी के बरतन की तरह
हो या दीवाना उसका इस कदर
मुझको हे रसख़ान मोहन की तरह
टूट कर बिखरें न हम ‘शेरी’ कहीं
देखना इक टूटे दरपन की तरह
दृष्टिकोण-7 से साभार
1 टिप्पणी:
सौदेबाजी में महाजन की तरह.
आदमी बिकता है कतरन की तरह.
भाई चान्द्शेरी साहित्य जगत के फलक पर बड़ी तेजी से उभरे चंद अदीबों में हैं.दिलकश ग़ज़ल के लिए उन्हें मुबारकबाद.
जन कवि डॉ. रघुनाथ मिश्र.
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