नवगीत
स्मृति के लाजपट खुले
मटमैले चित्र क्यों धुले।
अनव्याही गदराई साँझ
पैठ गई तामस के गाँव
चंदा ने अंतस की बात
लिख भेजी धरती के नाम।
यौवन की देहरी के पास
फूलों के रूप रंग तुले।
नींद मुई बन उड़ी कपूर
चीख उठा धड़कन का कीर।
जाने किस आहट के पास
जाग पड़ी चुपके से पीर।
आँखों में पिघल गया मोम
पानी मे क्षार ज्यों घुले।
भावों के बाग हरसिंगार
महक उठे मलयानिल झूम।
मन की मधुबगिया में मोर
नाच उठे और मची धूम
चहक पड़ी कल्पना परी
बिखर गये गीत चुलबुले।
1 टिप्पणी:
श्रेष्ट-सार्थक-आदर्श रचनाकार-कुशल संपादक-दक्ष आलोचक भाई मार्तंड(डा. कुंवर वीर सिंह)जी से कोटा और इससे पूर्व एनी स्थानों पर बड़े राष्ट्रीय स्तर के जलसों में साथ- साथ सम्मानित होने के अवसर अविष्मर्णीय बन गए हैं.प्रस्तुति रचना ने मुझे ऊर्जावान बनाया हैं.मैं उनका आभारी हूँ और दिल से बधाई देता हूँ.
जन कवि डा. रघुनाथ मिश्र
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