बुधवार, 21 नवंबर 2012

रमेश चंद गोयल 'प्रसून', गाज़ियाबाद


पेड़ ने खाये थे पत्‍थर पेड़ के फल आपने

फि‍र इसी को सिर्फ़ क़िस्‍मत थी कहा कल आपने

साथियों का साथ था तो साथियों को छोड़कर

पाँव पीछे कर लिये क्‍यों देख दलदल आपने

झांकिये भीतर कोई आवाज़ देकर कह रहा

क्‍यों किया है, क्‍यों किया यह क्‍यों किया छल आपने

हाथ ही केवल नहीं मुँह तक भी काला हो गया

कोठरी में जो छुआ भूले से काजल आपने

सोच का घर बन्‍द है खिड़की व दरवाज़ा नहीं

आँख पर मुँह पर जड़ी ऊपर से साँकल आपने

आग फैली शहर में उसको बुझाने के लिए

बाँट दी चिनगारियाँ यह क्‍या किया हल आपने

पुस्‍तक 'इस शहर में' से साभार 

2 टिप्‍पणियां:

डा. रघुनाथ मिश्र ने कहा…

पाँव पीछे कर लिए कुन देख दल दल आप ने.वाह क्या बात है.साधुवाद.
डा.रघुनाथ मिश्र

डा. रघुनाथ मिश्र ने कहा…

पाँव पीछे कर लिए कुन देख दल दल आप ने.वाह क्या बात है.साधुवाद.
डा.रघुनाथ मिश्र