अब के सावन से मुलाक़ात यूँ कर लें
आज गुजरे हुए लम्हों में चलो खो जाये
वरना गुजरेगी नहीं रात चलों यूँ कर लें
शेर लिखता हूँ ख़यालों में चले आओ तुम
आज कागज़ पे मुलाक़ात चलो यूँ कर लें
काटे कटता नहीं इक पल भी श्बे फुरक़त का
उनसे कहिएगा ये हालात चलो यूँ कर लें
मैंने ग़ज़लों में ‘असर’ उनकी ही अक़्कासी की
उनसे कह दें दिली जज़्बात चलों यूँ कर लें।।
दृष्टिकोण 8-9 (ग़ज़ल विशेषांक) से साभार
1 टिप्पणी:
appreciable composition.
DR. RAGHUNATH MISRA
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