सान्निध्य दर्पण
यादों के झरोखों से
शुक्रवार, 2 नवंबर 2012
शिव डोयले, विदिशा
छंद यदि टूटा तो गीतों का मान चला जाएगा
सुर ताल न साधे, तो समझो गान चला जाएगा
भाषा को निर्धन मत बनने देना कवि, साधक
जग हँसेगा औश्र सरस्वती का सम्मान चला जाएगा।
भाषा कैसी भी वतन की पहचान चाहिए
स्नेह आशीष देने वाली माँ महान् चाहिए
दूसरों के आँगन में कभी गुजर बसर नहीं हाती
सुकूँ से जीने मरने को बस हिन्दुस्तान चाहिए
दृष्टिकोण-5
से साभार
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