शुक्रवार, 16 नवंबर 2012

भगवत सिंह जादौन 'मयंक', कोटा


जब जीवन उपहार मिले
सबको उसका प्‍यार मिले
सद्गुण मय होवे ये जग, 
क्‍यों कोई बदकार मिले।
मानव सेवा के हित को, 
जन्‍म मुझे हर बार मिले।
ग़ैर मुजस्‍सम फि‍र ढूँढूँ, 
पहले तो साकार मिले।
तकवा तो धरती पर हो, 
न घृणित कोई व्‍यापार मिले।
मिलना तो आखिर है मिलना, 
आर मिले या पार मिले।
ठहरे दरिया से बेहतर, 
कोई तो मझदार मिले।
सुखमय हो दुनिया सारी,
दु:ख क्‍यों घरबार मिले।।

दृष्टिकोण 8-9 (ग़ज़ल विशेषांक)

1 टिप्पणी:

DR.RAGHUNATH MISHR ने कहा…

bhagwat sing jadon'mayank' is the favourite poets of kota and rajasthan.i take an opportunity to congrat him for his meaningful composition.all the best for brighter future.
DR.RAGHUNATH MISHR