शब्दातीत अनूप अनुपम, अतुलनीय होती है माँ
भिनसारे उठ चूल्हा चक्की, सारे दिन खटती रहती
पत्नी बहिन सुता माँ बनकर, खण्ड खण्ड बँटती रहती
देर रात तक जगती रहती, जाने कब सोती है माँ।।
घर भर की सुख सुविधाओं की, माला रोज पिरोती है
तुलसीजी पर माथ नवाकर, माँगे रोज मनौती है
धरती जैसी सहनशीलता, आसमान सा हृदय उदार
सागर सी ममता लहराती, जिसके मन मे अपरम्पाऱ
किसी प्रार्थना के मंगलमय, भावों की होती है माँ।।
दीवाली के खील बताशे, होली गुझियाओं में
ईद मुबारक की खुशियों में, क्रिसमस की दुआओं में
मंगलमयी कामनाओं सी, वरदहस्त हाती है माँ।।
रामायण चौपाई जैसी, गीता के उपदेशों सी
मस्जिद की आजानों जैसी, बाइबिल के अनुदेशों सी
तीरथ जैसी वन्दनीय और पूजनीय होती है माँ।।
दृष्टिकोण से साभार
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