रिश्तों के बदलते मायने
अब वे अहसास नहीं रहे
बन गए अहम् की पोटली
ठीक अर्थशास्त्र के नियमों की तरह
त्याग की बजाय माँग पर आधारित
हानि और लाभ पर आधारित
शेयर बाजार के उतार-चढ़ाव की तरह
दरकते रिश्ते, ठीक वैसे ही
जैसे किसी उद्योगपति ने
बेच दी हो घाटे वाली कम्पनी
बिना समझे किसी के मर्म को
वैसे ही टूटते रिश्ते
आज के समाज में और
अहसास पर
हावी होता जाता है अहम् ।
श्री मुकेश 'नादान' सम्पादित पुस्तक *साहित्यकार-4* से साभार
अब वे अहसास नहीं रहे
बन गए अहम् की पोटली
ठीक अर्थशास्त्र के नियमों की तरह
त्याग की बजाय माँग पर आधारित
हानि और लाभ पर आधारित
शेयर बाजार के उतार-चढ़ाव की तरह
दरकते रिश्ते, ठीक वैसे ही
जैसे किसी उद्योगपति ने
बेच दी हो घाटे वाली कम्पनी
बिना समझे किसी के मर्म को
वैसे ही टूटते रिश्ते
आज के समाज में और
अहसास पर
हावी होता जाता है अहम् ।
श्री मुकेश 'नादान' सम्पादित पुस्तक *साहित्यकार-4* से साभार
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