कुछ बच्चे, जिनके
कंधे पर होने चाहिए थे बस्ते
उनके कंधे पर देखता हूँ
लटके हुए मोमजामें के थैले और
सड़क पर बिखरी हुई
प्लास्टिक की थैलियों को
समेटते हुए वे छोटे छोटे हाथ
सुनता हूँ उनके अबोध
हँसते मस्ती में गाते फिल्मी गीत
काश ! पैबन्द का दर्द जान पाते
किन्तु वे उनमें जींस का आनंद लेते
बेखौफ़ बचपन का मज़ाक उड़ाते
पूछना चाहता हूँ, उन्हें रोक कर, पर
फिल्मों से चुराया एक शब्द बोलते हैं-
सॉरी ! हमें जल्दी है
कल नये साल की खुशियाँ मनाई थीं न
शहर में बहुत कचरा फैला हुआ है
समेटना है, कमाई करनी है
आज खूब माल मिलेगा
और फिर हम भी मनायेंगे नया साल।।
लेखक की पुस्तक 'कचरे का ढेर' से साभार।
garbage collection |
उनके कंधे पर देखता हूँ
लटके हुए मोमजामें के थैले और
सड़क पर बिखरी हुई
प्लास्टिक की थैलियों को
समेटते हुए वे छोटे छोटे हाथ
सुनता हूँ उनके अबोध
हँसते मस्ती में गाते फिल्मी गीत
काश ! पैबन्द का दर्द जान पाते
किन्तु वे उनमें जींस का आनंद लेते
बेखौफ़ बचपन का मज़ाक उड़ाते
पूछना चाहता हूँ, उन्हें रोक कर, पर
फिल्मों से चुराया एक शब्द बोलते हैं-
सॉरी ! हमें जल्दी है
कल नये साल की खुशियाँ मनाई थीं न
शहर में बहुत कचरा फैला हुआ है
समेटना है, कमाई करनी है
आज खूब माल मिलेगा
और फिर हम भी मनायेंगे नया साल।।
लेखक की पुस्तक 'कचरे का ढेर' से साभार।
1 टिप्पणी:
जनवादी लेखक संघ, कोटा द्वारा प्रकाशित काव्य संकलन् ,'कचरे का ड्रम्' विजेन्द्र जैन की प्रतिनिधि व्यंग्य रचनाओँ की पुस्तक है. देश भर मेँ इसे सस्नेह-सादर पढा जा रहा है. जैन को बधाई.
- डा. रघुनाथ मिश्र
अधिवक्ता/ साहित्यकार.
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